Monday, May 30, 2022

मन की गागर


बदरा बदरा लड़ पड़े

बरखा बरखा कर पड़े


धूप बुझी आंगन से

श्याम रंग उमड़ पडे़


बरसों से लगे हुये

शाख से पत्ते झड़ पड़े


अहम से ठोकर खाके

स्वपन बीच भंवर पड़े


मन की गागर से अश्रु

बूँद बूँद निकल पड़े


गौरव कुमार *विंकल*

Saturday, May 28, 2022

चिराग़ ...


जिद से भरा सवाल था,

'मैं जा रहा हूं घूमने'
कांपती हुई आवाज़ बोली,
'जिधर भी जा मुझे परवाह नहीं'

अंधेरे में जल रहा था 
रजाई के क़रीब
कुर्सी की बाजू पर 

क्या वो ,
कंपकपाता बुझ गया होगा?

चिराग़ अंधेरे में!

गौरव कुमार *विंकल*

सफ़रनामा यादों का ...

सफ़रनामा यादों का ...


Friday, May 27, 2022

चलते चलते ...

लिखा तुम्हारा पढ़ते - पढ़ते
अश्क संभाले गिरते - गिरते

ऊंचाई  पर  ही  उतरन  थी
उतर गया वो चढ़ते - चढ़ते

बरसों  बाद ,  बात  पुरानी
याद आ गई चलते - चलते

मन  की  हालत  ठीक नहीं
हल ढूंढे दिन ढलते - ढलते 

विंकल मुखातिब है हिज़्र से
मर जायेगा आह भरते-भरते

गौरव कुमार *विंकल*

Thursday, May 26, 2022

संभाल लो ...


बिगड़ते हालात संभाल लो
तुम रातो रात संभाल लो

किसी पर भी उठ जाते है
ये अपने हाथ संभाल लो

दूर तलक जाने से पहले
घर पे ही बात संभाल लो

सैलाब ना आ जाए कहीं
आयी बरसात संभाल लो

पीढ़ियों तक चलेंगे *विंकल*
ज़रूरी कागज़ात संभाल लो

गौरव कुमार *विंकल*

Wednesday, May 25, 2022

"माँ" ने कहा था...

    माँ ने 
    एक रोज़ 
    ये कहा था,

   "जब बच्चे बड़े हो जाएं ,
    तो माँ बाप को, 
    मर जाना चाहिए"

   गौरव कुमार *विंकल*





Sunday, May 22, 2022

मेरा अहम !

माँ को अहसास है 
जो मेरे पास है 
वो चाहता नहीं पास रहना 

माँ बहुत उदास है 
क्या बात है 
वो चाहती नहीं कहना 
पिताजी सोचते हैं 
खुद को कोसते हैं 
वो गलत थे 
उनकी सोच.....

माँ सोचती है 
अपनी कोख को कोसती है 
जो हुआ गलत हुआ.....

मैं सोचता हूँ
मेरा मरना 
उनके
मरने जैसा होगा

उनका गुजर जाना 
मेरा अहम भी 
नहीं तोड़ पायेगा.....

गौरव कुमार *विंकल*

Saturday, May 21, 2022

माँ अकेली है ...

जब बाहर 
शहर से बाहर होता हूं
तो सोचता हूं माँं अकेली है
अब कहां उसकी सहेली है।

माँ जानती है
चाहे
मुझे पहचानती है
नादान हूं

पर मैं जवान हूं
अब तो मुझे समझना चाहिए
खुदको इस घड़ी में परखना चाहिए
दिल में ये ख़्याल रखना चाहिए

इसके लिए भी 
क्या निकालना कोई मुहूर्त है
की माँ को मेरी ज़रूरत है
अब मुझे चलना चाहिए।

गौरव कुमार *विंकल*

फिर भी पागलखाने नहीं है ...

उसके अब होश ठिकाने  नहीं है

वोह फिर भी पागलखाने नहीं है


सूरत तो  कभी  सीरत  देखकर
हमने जरा अंदाजे लगाने नहीं है

भला रईसी है,  उसकी बातों में
मगर जेब में,  चार आने नहीं है

चार दिन  दिल्लगी  कर तो ली
चार दिन गम के बिताने नहीं है

विंकल, लिखते  हैं ऐसे  ही हम
यूँ कोई शायर जाने माने नहीं है

      गौरव कुमार *विंकल*

Thursday, May 19, 2022

जरा समझ चाल ...

मिसाल बेमिसाल दुनियां की

जरा समझ चाल दुनियां की


मन वहशी भेड़िए सा इसका

है  इंसानी  खाल दुनियां की


नज़रबंद ख़ुदा को कर दिया

चले  फिलहाल  दुनियां  की


जग  को  अंधियारा  बांटती

है  ऐसी  मशाल दुनियां की


विंकल,  लम्हों का मेहमान

उम्र अनंतकाल  दुनियां की


गौरव कुमार *विंकल*