Saturday, May 21, 2022

फिर भी पागलखाने नहीं है ...

उसके अब होश ठिकाने  नहीं है

वोह फिर भी पागलखाने नहीं है


सूरत तो  कभी  सीरत  देखकर
हमने जरा अंदाजे लगाने नहीं है

भला रईसी है,  उसकी बातों में
मगर जेब में,  चार आने नहीं है

चार दिन  दिल्लगी  कर तो ली
चार दिन गम के बिताने नहीं है

विंकल, लिखते  हैं ऐसे  ही हम
यूँ कोई शायर जाने माने नहीं है

      गौरव कुमार *विंकल*

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