Saturday, July 9, 2022

वक़्त से बेहतर

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तू ख़ुशी की बजाय देख 
बस ग़म की सराय देख 

छाँव अपने सरपर ही 
धूप फिरे उठाए देख 

वक़्त से बेहतर दुनियां में 
कौन भला समझाए देख 

सोच सोच के जीने वाला 
बेमौत ही मर जाए देख 

सच को अनदेखा करके 
विंकल खूब पछताए देख 

गौरव कुमार *विंकल*

Wednesday, July 6, 2022

ख्वाहिश

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बातों के जंगल से बातों को पकड़ा है
अँधेरों में गुमशुदा रातों को पकड़ा है

दिल से होकर जो आँखों से निकली
बूँद बूँद बरसती बरसातों को पकड़ा है

ख्वाहिश ए जन्नत जो जहन्नुम ले गई
नादान गुनहगारों के हाथों को पकड़ा है

मुकद्दर में कभी किसी से कर ना पाया
ऐसी ख्वाहिश भरी मुलाकातों को पकड़ा है

वो कुछ तो बने खोलके जिन्होंने है पढ़ी
"विंकल" ने तो बस किताबों को पकड़ा है

गौरव कुमार *विंकल*

Sunday, July 3, 2022

बुनियाद

रात सहर तक है
धूप दोपहर तक है

गीदड़ कब तक दौड़ेगा
दौड़ शहर तक है

मीठे बोल कैसे बोले
सोच ज़हर तक है

इस दुनिया की बुनियाद
कुदरती कहर तक है

जमीं से रिश्ता जोड़े रख
'विंकल' बुलंदी लहर तक है

©गौरव कुमार *विंकल*