Wednesday, July 6, 2022

ख्वाहिश

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बातों के जंगल से बातों को पकड़ा है
अँधेरों में गुमशुदा रातों को पकड़ा है

दिल से होकर जो आँखों से निकली
बूँद बूँद बरसती बरसातों को पकड़ा है

ख्वाहिश ए जन्नत जो जहन्नुम ले गई
नादान गुनहगारों के हाथों को पकड़ा है

मुकद्दर में कभी किसी से कर ना पाया
ऐसी ख्वाहिश भरी मुलाकातों को पकड़ा है

वो कुछ तो बने खोलके जिन्होंने है पढ़ी
"विंकल" ने तो बस किताबों को पकड़ा है

गौरव कुमार *विंकल*

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