Tuesday, June 28, 2022

चेहरे



कुछ ढके रहे नकाब से चेहरे 
कुछ बंद रहे किताब से चेहरे 

दीदार होते ही चुभे रे कुछ 
खार-सने हैं गुलाब से चेहरे

संगमरमर या कोयले जैसे 
खुदा बनाता हिसाब से चेहरे

सवाल बन फिरता रहा कभी 
मुझको मिले जवाब से चेहरे 

उजालों में विंकल थे तेरे जो 
अँधेरे में बिछड़े ख्वाब से चेहरे

गौरव कुमार *विंकल*

Friday, June 24, 2022

चाय मट्ठी मेरी तरफ़ से

धीमी आंच पे पक रहा था
भड़की भट्ठी, मेरी तरफ़ से

तू लाख मना, अब मुझको
पक्की कट्टी,  मेरी तरफ़ से

ज़ख़्म मैंने दिया है तो फिर
मलहम पट्टी, मेरी तरफ़ से

चाहे पानी भी न पूछ मुझे
चाय  मट्ठी, मेरी तरफ़  से

विंकल कड़वी यादें दे गया
मीठी  बट्टी, मेरी  तरफ़ से

गौरव कुमार *विंकल*

Saturday, June 18, 2022

जीवन चक्र

निकलता हूँ जब
घर से कमाने 
याद आ जाते हैं
वो जमाने

जब आप भी काम को जाते थे
आते हुये खाने को कुछ लाते थे

आज मैं भी उसी दौर में हूँ 
मुझसे भी वही उम्मीदें है
आप हमारे लिये जीते थे
अब हम उनके लिये जीते हैं

जीवन चक्र चल रहा है
वक्त आप की दुआ से 
अच्छा निकल रहा है

आज एक पुत्र, 
पिता की भांति
अपने फर्ज निभा रहा है
पर आप सा बन पाना 
मुमकिन नहीं ! 

गौरव कुमार *विंकल*

Wednesday, June 15, 2022

जंगल में आग

वो एक अफवाह उड़ाते हैं
जंगल में आग लगाते हैं

नादानों की फेहरिस्त बनाके
पत्थर हाथों में थमाते हैं

खून में गर्मी है जिनके
जलसे में उन्हें बुलाते हैं

तेरा मजहब सबसे बड़ा
ये कहकर उकसाते हैं

मजबूरों की मजबूरी का
कुछ वो फायदा उठाते हैं

हुक्मरान हैं जो *विंकल*
अल्लाह राम को लड़वाते हैं

गौरव कुमार *विंकल*

Monday, June 13, 2022

साज़िश से जीतेगा



हां, कोई भी झूठा नहीं है

बस एक तू सच्चा नहीं है


सब जानता है दिल तेरा

अब तू कोई बच्चा नहीं है


साज़िश से जीतेगा, छी

ये बिल्कुल अच्छा नहीं है


हेर फेर तू जितना भी कर

हिसाब उसका कच्चा नहीं है


पागल लोग कहेंगे *विंकल*

चाहे पागल तू लगता नहीं है


गौरव कुमार *विंकल*


Saturday, June 11, 2022

खुद से वादा कर



जीवन अपना सादा कर
जरूरतों को आधा कर

जुबान पर लगाम रख
यूं पार ना मर्यादा कर

सब बुरे विचार त्याग दे
नेक अपना ईरादा कर

गलतियों को मान जा
बहस ना तू ज्यादा कर

मन किसी का मत दुखाना 
विंकल खुद से वादा कर

गौरव कुमार *विंकल*

Tuesday, June 7, 2022

एक पंक्ति में


रात, एक पंक्ति में
बात, एक पंक्ति में

पल मे छूटा बरसों का
साथ, एक पंक्ति में

हमने मुक्कमल कर दी
मुलाकात, एक पंक्ति में

अब तुम्हें क्या बताएं
हयात, एक पंक्ति में

ज़ाहिर ना होंगे विंकल
जज़्बात, एक पंक्ति में

गौरव कुमार *विंकल*

जिद्द


बरसों पहले ही 

हम

एक दूजे के

घर के मेहमान 

बन जाते

अगर

*माँ*

जिद्द ना करती !


गौरव कुमार *विंकल*







Saturday, June 4, 2022

अपनापन


अगर तन से अच्छा मन होता
फिर खुद का ना दुश्मन होता

नाम तेरा जो कभी भज लेता
फिर खाली न यह बर्तन होता

देख आना जाना कौन भोगता
गर चौरासी का ना बंधन होता

मोह माया में ना फंसता जो
सब कुछ तुझको अर्पण होता

खतायें बख्श देता विंकल की
गर जरा भी अपनापन होता

गौरव कुमार *विंकल*

Thursday, June 2, 2022

मन ...



मन प्रश्नों तक ही सीमित है

उसका ऐसा होना नियमित है


क्षण भर वो उल्लास मनाता

क्षण भर में वो चिंतित है


तन पर वश मन का ही

मूर्छित सा कभी जीवित है


धावक वो ब्रह्मांड में ऐसा

जो वेदों में भी अंकित है


वक्त बेवक्त कहता लिखने को

वो विंकल को करता भ्रमित है 


गौरव कुमार *विंकल*