Saturday, June 4, 2022

अपनापन


अगर तन से अच्छा मन होता
फिर खुद का ना दुश्मन होता

नाम तेरा जो कभी भज लेता
फिर खाली न यह बर्तन होता

देख आना जाना कौन भोगता
गर चौरासी का ना बंधन होता

मोह माया में ना फंसता जो
सब कुछ तुझको अर्पण होता

खतायें बख्श देता विंकल की
गर जरा भी अपनापन होता

गौरव कुमार *विंकल*

8 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
    'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बेहद उम्दा रचना
    वाह

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  3. आप सभी का बहुत बहुत आभार

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  4. खतायें बख्श देता विंकल की
    गर जरा भी अपनापन होता///
    बहुत बढिया गौरव जी।सुन्दर रचनामें हर शेर सार्थक है।बहुत शुभकामनाएं।

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