Saturday, May 21, 2022

माँ अकेली है ...

जब बाहर 
शहर से बाहर होता हूं
तो सोचता हूं माँं अकेली है
अब कहां उसकी सहेली है।

माँ जानती है
चाहे
मुझे पहचानती है
नादान हूं

पर मैं जवान हूं
अब तो मुझे समझना चाहिए
खुदको इस घड़ी में परखना चाहिए
दिल में ये ख़्याल रखना चाहिए

इसके लिए भी 
क्या निकालना कोई मुहूर्त है
की माँ को मेरी ज़रूरत है
अब मुझे चलना चाहिए।

गौरव कुमार *विंकल*

7 comments:

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 24 मई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बड़ी सुन्दरता से बांधा है भावों को कविता में!
    सादर!

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  4. भावपूर्ण लिखा है ।

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  5. इसके लिए भी
    क्या निकालना कोई मुहूर्त है
    की माँ को मेरी ज़रूरत है
    अब मुझे चलना चाहिए।
    सच में , ये कोई बेटा सोच ले कि उसकी माँ को उसकी जरूरत है - तो माँ का जीवन ही सफल हो जाए | मार्मिक अभिव्यक्ति गौरव जी | हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. बहुत बहुत आभार आप रचना की तह तक गए और ऐसे ही आप अपना सनेह बनाये रखना , धन्यवाद।

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