Saturday, May 28, 2022

चिराग़ ...


जिद से भरा सवाल था,

'मैं जा रहा हूं घूमने'
कांपती हुई आवाज़ बोली,
'जिधर भी जा मुझे परवाह नहीं'

अंधेरे में जल रहा था 
रजाई के क़रीब
कुर्सी की बाजू पर 

क्या वो ,
कंपकपाता बुझ गया होगा?

चिराग़ अंधेरे में!

गौरव कुमार *विंकल*

2 comments:

  1. क्या बात है प्रिय गौरव जी।निशब्द करता शब्द चित्र 👌👌👌

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  2. सभी रचनाओं की तरह इस रचना को भी प्यार देने के लिए बहुत बहुत आभार

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