Friday, October 7, 2022

कब तक

सच का हत्यारा, कब तक
झूठ छल का मारा कब तक

सूरज बन तू उजियारा बांट 
यूं, रात का तारा, कब तक

आंसू, खुशी के ही जचते हैं
समंदर खारा खारा, कब तक

बीच भंवर तो उतरकर देख
साहिल से नज़ारा, कब तक

नेकी की राह पे चल "विंकल"
ये बदी का सहारा, कब तक

गौरव कुमार *विंकल*

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१०-१० -२०२२ ) को 'निर्माण हो रहा है मुश्किल '(चर्चा अंक-४५७७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. सुन्दर रचना

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