Sunday, October 30, 2022

अबोध बालक

एक पग कर्म चले 
एक पग धर्म चले

मृत्यु के समक्ष देख
पग पग जन्म चले

मन अबोध बालक
हो मस्त मग्न चले

झूठ के गर्भ में
सत्यता परम चले

सूर्यास्त के पश्चात
चांद, तारों संग चले

गौरव कुमार *विंकल*

6 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(३१-१०-२०२२ ) को 'मुझे नहीं बनना आदमी'(चर्चा अंक-४५९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

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  4. मीठे बताशे सी सरल गूढ़ रचना ।

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