Tuesday, September 22, 2009

आज फिर तुमने .......


आज फिर तुमने वही खता की है
छोड़ी थी कभी जो वो पेश अदा की है

गुस्ताखियाँ ना माफ़ होंगी अब आपकी
बात हमने ये आपको बता दी है

वो उडकर मेरे चेहरे पर आ गिरी
क्योँ तुमने बुझी आग को हवा दी है

नजदीकियां कहीं दूरियों में ना बड जाएँ
फिर ना कहना हमने आपको सजा दी है

रोकता है तुम्हें कहता करने से विंकल
बात उसकी तुमने हँसी  में उड़ा दी है

काश तब आईना टूट जाता........


काश तब आईना टूट जाता तो अच्छा था
वरना आज मैं खुद से लड़ता तो नहीं

उसके दामन से कैसे मुझ पर लग गया
दाग बदनामी का आसानी से मिटता तो नहीं

वो उल्टे कदम चल दिए हमें तन्हा छोड़कर
पर दिल किये वादों से पीछे हटता तो नहीं

मासूम सूरत,भोली बातें और चंचल अदाएं
बेवफाई कर सकती हैं ये सब लगता  तो नहीं

रिश्ता जब प्यार का कोई अपना तोड़ जाये विंकल
फिर अजनबी से बात करने का मन करता तो नहीं.

Monday, September 21, 2009

नहायेंगे बच्चे अबके सावन में जरूर ........


हम बादलों से बहुतों की आस है जुडी
किसान मर जायेंगे अगर हम ना बरसे


हमें मालूम है पालनहार हैं वो सबके
बरसेंगे जरूर हम इतने भी नहीं बेतरसे

नहायेंगे बच्चे अबके सावन में  जरूर
जो आये हैं कपडे उतारकर गलियों में घर से

मिटटी से बने घर  टूट ना जायें कहीं
हम थम जाते हैं कईं बार इस डर से


इन्द्रदेव की तुम इतनी करते हो आराधना
वो भेजते नहीं खाली किसी को दर से

विंकल बादलों ने सपनों में आकर कहा ये
तुम ऊपर आ जाओ इस जग नश्वर से

Sunday, September 20, 2009

तेरी यादों के जुगनू ............


तन्हाई में चले आते है तेरी यादों के जुगनू
कुछ पल संग बिताते है तेरी यादों के जुगनू

गमों की अँधेरी स्याह रात में रहता हूँ मैं
रौशनी कभी कर जाते है तेरी यादों की जुगनू

खुशमिजाजी भरी गजलें तुने बहुत सुनी मुझसे
कोई दर्द भरा गीत गाते है तेरी यादों की जुगनू

इतेफाक से हमारी नजरें मिल गयी थी शायद
बिछडे गलतफ़हमी से बतलाते हैं तेरी यादों के जुगनू

तू कहाँ किस दुनिया में खो गयी पूछे विंकल
सच बतलाने से कतराते हैं तेरी यादों के जुगनू  

Saturday, September 19, 2009

ख्याल के पंछी .......


मैं तो एक एहसास हूँ
रहता तुम्हारे पास हूँ

ख्याल के पंछी की तरहां
ना आम हूँ ना खास हूँ

जिस दिन तुम रोये थे
उस दिन से मैं उदास हूँ

रोक ली क्योँ हंसी बोलो
ना मैं गम ना उल्लास हूँ

अजनबी हूँ मैं तुम्हारे लिए
फिर भी तुम्हारा दास हूँ

तोडे ना जो टूटे विंकल
मैं वो अटूट विशवास हूँ   

Friday, September 18, 2009

बचपन की यादें .......... माँ की बातें


बचपन  की  यादें  वक्त  के  फंदे  पर कभी झूलती नही
माँ की बातें और लोरियां मुझे कभी भूलती नहीं

तसवीरें देखता हूँ जो दीवारों पर कब से लटकी हैं
माँ संग बैठी है ये देख आँखें टपकी है

 बेकार की बात नहीं मैं सच कह रहा हूँ
माँ की यादों के संग मैं बह रहा हूँ

माँ को गले लगाये हुए एक और तस्वीर है
ये सब तसवीरें ही तो मेरी जागीर है

कभी नहीं खाली हो सकता खामोशी का समंदर
मुझे विरासत में मिला था सुहाना सा मंजर

हाथ पकडा हुआ था माँ ने मेरा तब भी
हाथ पकडा हुआ है माँ ने मेरा अब भी


चार दीवारें हैं उस पर डाली हुयी छत है
माँ का ये कमरा उसका जीवन रुपी रथ है

सदा दी है दुआ, बेटा हमेशा आगे बढना
माँ तुम्हें कभी रुलाया हो तो मुझे माफ़ करना.

मेरी तरफ जो अभी नजर हुयी थी


मेरी तरफ जो अभी नजर हुयी थी
वो कितने अश्कों से भरी हुयी थी

कर गया है कोई धोका उससे
इस ख्याल से वो डरी हुयी थी

प्रीतम को पाने की सब ख्वाहिशें
उसकी नजर में  अब मरी हुयी थी

वो आएगा और उसे संग ले जायेगा
इक पक्की जुबान ये करी हुयी थी

सिन्दूर, मेहँदी, कंगन, सब चीजें विंकल
उसने अपनी चोखट पर धरी हुयी थी

उसकी यही एक गलती रही


सारी रात वो पिघलती  रही
उसकी यही एक गलती रही

तेज हवाएं चल रही थी मगर 
कमबख्त वो जलती रही 

न फायदा कोई उठा सका 
उम्र हरपल जिसकी ढलती रही 

मौत के करीब जाकर वो 
अपने साये में पलती रही 

बेकार गयी उसकी जिन्दगी विंकल 
सांसे अँधेरे में जिसकी निकलती रही  

बचपन उसका गन्दी गलियों में.......


सड़क किनारे जो सोता था
आधी रात को रोता था

सुबह चेहरा खिल जाता उसका
शाम को मायूस होता था

वो बेचारा हरदम अपनों को
यतीम होकर भी खोता था

बचपन उसका गन्दी गलियों में
कूड़ा-करकट ढोता था

जिन्दगी थी उसकी ऐसी 'विंकल'
सपने तोड़कर फिर संजोता था