Friday, September 18, 2009

बचपन की यादें .......... माँ की बातें


बचपन  की  यादें  वक्त  के  फंदे  पर कभी झूलती नही
माँ की बातें और लोरियां मुझे कभी भूलती नहीं

तसवीरें देखता हूँ जो दीवारों पर कब से लटकी हैं
माँ संग बैठी है ये देख आँखें टपकी है

 बेकार की बात नहीं मैं सच कह रहा हूँ
माँ की यादों के संग मैं बह रहा हूँ

माँ को गले लगाये हुए एक और तस्वीर है
ये सब तसवीरें ही तो मेरी जागीर है

कभी नहीं खाली हो सकता खामोशी का समंदर
मुझे विरासत में मिला था सुहाना सा मंजर

हाथ पकडा हुआ था माँ ने मेरा तब भी
हाथ पकडा हुआ है माँ ने मेरा अब भी


चार दीवारें हैं उस पर डाली हुयी छत है
माँ का ये कमरा उसका जीवन रुपी रथ है

सदा दी है दुआ, बेटा हमेशा आगे बढना
माँ तुम्हें कभी रुलाया हो तो मुझे माफ़ करना.

1 comment:

  1. ओह फिर से वही मार्मिक रचना 👌👌😞

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