हम बादलों से बहुतों की आस है जुडी
किसान मर जायेंगे अगर हम ना बरसे
हमें मालूम है पालनहार हैं वो सबके
बरसेंगे जरूर हम इतने भी नहीं बेतरसे
नहायेंगे बच्चे अबके सावन में जरूर
जो आये हैं कपडे उतारकर गलियों में घर से
मिटटी से बने घर टूट ना जायें कहीं
हम थम जाते हैं कईं बार इस डर से
इन्द्रदेव की तुम इतनी करते हो आराधना
वो भेजते नहीं खाली किसी को दर से
विंकल बादलों ने सपनों में आकर कहा ये
तुम ऊपर आ जाओ इस जग नश्वर से
माशाल्लाह !!! इतनी गुजारिश पे भी न बरसे तो बादलों से कह दो कहीं और जाकर अपनी दुनिया बसा लें .........हमारी दुनिया में
ReplyDeleteकोई काम नही उनका .
bahut khuub Gaurav ji.. very emotional touch
ReplyDeleteवाह! लाजवाब आत्म कथ्य बादल का 👌👌👌👌🙏
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