बदरा बदरा लड़ पड़े
बरखा बरखा कर पड़े
धूप बुझी आंगन से
श्याम रंग उमड़ पडे़
बरसों से लगे हुये
शाख से पत्ते झड़ पड़े
अहम से ठोकर खाके
स्वपन बीच भंवर पड़े
मन की गागर से अश्रु
बूँद बूँद निकल पड़े
गौरव कुमार *विंकल*
बदरा बदरा लड़ पड़े
बरखा बरखा कर पड़े
धूप बुझी आंगन से
श्याम रंग उमड़ पडे़
बरसों से लगे हुये
शाख से पत्ते झड़ पड़े
अहम से ठोकर खाके
स्वपन बीच भंवर पड़े
मन की गागर से अश्रु
बूँद बूँद निकल पड़े
गौरव कुमार *विंकल*
उसके अब होश ठिकाने नहीं है
वोह फिर भी पागलखाने नहीं है
मिसाल बेमिसाल दुनियां की
जरा समझ चाल दुनियां की
मन वहशी भेड़िए सा इसका
है इंसानी खाल दुनियां की
नज़रबंद ख़ुदा को कर दिया
चले फिलहाल दुनियां की
जग को अंधियारा बांटती
है ऐसी मशाल दुनियां की
विंकल, लम्हों का मेहमान
उम्र अनंतकाल दुनियां की
गौरव कुमार *विंकल*