उसके अब होश ठिकाने नहीं है
वोह फिर भी पागलखाने नहीं है
हमने जरा अंदाजे लगाने नहीं है
भला रईसी है, उसकी बातों में
मगर जेब में, चार आने नहीं है
चार दिन दिल्लगी कर तो ली
चार दिन गम के बिताने नहीं है
विंकल, लिखते हैं ऐसे ही हम
यूँ कोई शायर जाने माने नहीं है
गौरव कुमार *विंकल*
बहुत ही सुंदर....लाजवाब।
ReplyDeleteआभार
ReplyDelete