Friday, May 27, 2022

चलते चलते ...

लिखा तुम्हारा पढ़ते - पढ़ते
अश्क संभाले गिरते - गिरते

ऊंचाई  पर  ही  उतरन  थी
उतर गया वो चढ़ते - चढ़ते

बरसों  बाद ,  बात  पुरानी
याद आ गई चलते - चलते

मन  की  हालत  ठीक नहीं
हल ढूंढे दिन ढलते - ढलते 

विंकल मुखातिब है हिज़्र से
मर जायेगा आह भरते-भरते

गौरव कुमार *विंकल*

8 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०५-२०२२ ) को
    'सुलगी है प्रीत की अँगीठी'(चर्चा अंक-४४४४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. नमस्ते जी, बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  2. बहुत सुंदर सृजन

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  3. बेहतरीन नज़्म।

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  4. आप सभी का बहुत बहुत आभार

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  5. लिखा तुम्हारा पढ़ते - पढ़ते
    अश्क संभाले गिरते - गिरते//
    वाह रचना!👌👌👌

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