Tuesday, June 28, 2022

चेहरे



कुछ ढके रहे नकाब से चेहरे 
कुछ बंद रहे किताब से चेहरे 

दीदार होते ही चुभे रे कुछ 
खार-सने हैं गुलाब से चेहरे

संगमरमर या कोयले जैसे 
खुदा बनाता हिसाब से चेहरे

सवाल बन फिरता रहा कभी 
मुझको मिले जवाब से चेहरे 

उजालों में विंकल थे तेरे जो 
अँधेरे में बिछड़े ख्वाब से चेहरे

गौरव कुमार *विंकल*

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