कुछ बंद रहे किताब से चेहरे
दीदार होते ही चुभे रे कुछ
खार-सने हैं गुलाब से चेहरे
संगमरमर या कोयले जैसे
खुदा बनाता हिसाब से चेहरे
सवाल बन फिरता रहा कभी
मुझको मिले जवाब से चेहरे
उजालों में विंकल थे तेरे जो
अँधेरे में बिछड़े ख्वाब से चेहरे
गौरव कुमार *विंकल*
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