दूर - दूर तक कोई करीब नहीं , करीब - करीब वो मुझसे दूर है
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को 'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है। सादर
सटीक रचना |
सुंदर भाव
बेहद उम्दा रचनावाह
आप सभी का बहुत बहुत आभार
बहुत सुंदर
खतायें बख्श देता विंकल कीगर जरा भी अपनापन होता///बहुत बढिया गौरव जी।सुन्दर रचनामें हर शेर सार्थक है।बहुत शुभकामनाएं।
आभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सटीक रचना |
ReplyDeleteसुंदर भाव
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना
ReplyDeleteवाह
आप सभी का बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteखतायें बख्श देता विंकल की
ReplyDeleteगर जरा भी अपनापन होता///
बहुत बढिया गौरव जी।सुन्दर रचनामें हर शेर सार्थक है।बहुत शुभकामनाएं।
आभार
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