Sunday, October 30, 2022

अबोध बालक

एक पग कर्म चले 
एक पग धर्म चले

मृत्यु के समक्ष देख
पग पग जन्म चले

मन अबोध बालक
हो मस्त मग्न चले

झूठ के गर्भ में
सत्यता परम चले

सूर्यास्त के पश्चात
चांद, तारों संग चले

गौरव कुमार *विंकल*

Friday, October 7, 2022

कब तक

सच का हत्यारा, कब तक
झूठ छल का मारा कब तक

सूरज बन तू उजियारा बांट 
यूं, रात का तारा, कब तक

आंसू, खुशी के ही जचते हैं
समंदर खारा खारा, कब तक

बीच भंवर तो उतरकर देख
साहिल से नज़ारा, कब तक

नेकी की राह पे चल "विंकल"
ये बदी का सहारा, कब तक

गौरव कुमार *विंकल*